"प्रदोष व्रत कथा" एक प्रमुख हिंदू पर्व व्रत है जो महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। यह व्रत हमारी पुरानी परंपराओं और धार्मिक संस्कृति को समर्पित है। प्रदोष व्रत कथा की कहानी अत्यंत पुरानी है और यह व्रत महादेव शिव को समर्पित होता है।
इस कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब देवगुरु बृहस्पति अपने शिष्य चंद्रमा के साथ बात कर रहे थे। चंद्रमा के पास विशेष गुण होने के बावजूद वह शिवजी की पूजा की थाली पर नहीं गया था और उसने इसे अनदेखा कर दिया था।
जब इसका पता चला तो शिवजी ने चंद्रमा पर श्राप दिया कि वह कभी भी पूर्णता में नहीं दिखेगा। इसके बाद चंद्रमा जलता रहा और उसकी रोशनी कम हो गई। चंद्रमा ने महादेव की आराधना करने के बाद उनसे क्षमाप्रार्थना की और उन्होंने उसे प्रदोष व्रत का पालन करने का उपाय बताया।
इस प्रकार, प्रदोष व्रत कथा व्रती को यह बताती है कि कैसे इस व्रत के माध्यम से शिवजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है और कैसे इस व्रत से भक्ति और शुभकामनाएँ प्राप्त हो सकती हैं। यह व्रत हिंदू धर्म में विशेष मान्यता रखता है और श्रद्धालु लोग इसे नियमित रूप से मानते हैं।